Sunday, February 14, 2010

लो कर लो बात!

मनमोहन सिंह सीधे-सच्चे और सरल दिल के व्यक्ति हैं. वो पेशे से नेता नहीं नौकरशाह हैं. लिहाज़ा वो बिना लाग-लपेट कर खुले और संतुलित ढंग से अपनी बातें सामने रखते हैं. लेकिन बतौर प्रधानमंत्री उनकी अपनी कुछ महत्वाकांक्षायें भी हैं. वो सच्चे देशभक्त हैं और चाहते हैं कि उन्हें भारत को विकसित देशों की श्रेणी में रखने के लक्ष्य को पूरा करने वाले व्यक्ति के तौर पर याद रखा जाए.

लेकिन उन्हें लक्ष्य को पूरा करने में भारत के मौजूदा हाल में तीन समस्यायें नज़र आती हैं. वो हैं ऊर्जा (बिजली), शिक्षा और पाकिस्तान. ऊर्जा के लिए तो उन्होंने अमेरिका के साथ परमाणु करार कर लिया. शिक्षा के क्षेत्र में चूंकि पिछले पाँच साल में अर्जुन सिंह के रहते कुछ नहीं कर पाए इसलिए दूसरी पारी में कमान सौंपी है तेज़-तर्रार कपिल सिब्बल को. सिब्बल उनके बेहद करीबी हैं. वो इतनी तेज़ी से भागे कि कहने लगे कि मैंने पूरे पाँच साल का काम सिर्फ 100 दिन में कर लिया अब बाकी दिनों में क्या करना है.

लेकिन पाकिस्तान के मसले पर मनमोहन सिंह चाह कर भी बहुत कुछ नहीं कर पाए हैं. कोशिश बहुत की थी. मुंबई हमलों में पाकिस्तान का सीधा हाथ होने के बावजूद शर्म अल शेख में साझा बयान जारी कर दिया. कह दिया कि बातचीत शुरू की जाएगी. यहां तक कि पहली बार किसी साझा बयान में बलूचिस्तान का ज़िक्र आया. पाकिस्तान ने इसे अपनी जीत बताया.

शर्म अल शेख की शर्म को महसूस करते ही थोड़ी बहुत सफाई दे कर मामले को रफा-दफा कर दिया गया. अब हालत ये है कि पाकिस्तान से बातचीत का पक्ष न रखने वाले एम के नारायणन को रिटायर कर दिया गया है और शर्म अल शेख के साझा बयान को ड्राफ्टिंग की गलती बताने वाले शिवशंकर मेनन को नया राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बना दिया गया है.फिर समय का चक्र तेज़ी से घूमा. मंत्रियों के बयान आए और सचिव स्तर की बातचीत शुरू करने की घोषणा भी कर दी गई. अब ये 25 फरवरी को दिल्ली में होनी है.

भारत कहता रहा है कि जब तक पाकिस्तान अपनी जमीन पर चलने वाली आतंकवादी गतिविधियों पर रोक नहीं लगता और मु्ंबई हमलों के लिए ज़िम्मेदार लोगों पर कार्रवाई नहीं करता तब तक बातचीत का कोई मतलब नहीं है. भारत ने बातचीत शुरू करने की घोषणा ऐसे वक्त कि जब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के मुज़फ्फराबाद में आतंकवादियों ने भारत के खिलाफ तथाकथित जेहाद जारी रखने का एलान किया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से भारत बातचीत के लिए मजबूर हो रहा है. लाल कृष्ण आडवाणी ने तो सीधे अमेरिका का नाम लिया और कहा कि अमेरिकी दबाव के चलते भारत बातचीत कर रहा है.

अब भारत कह रहा है आतंकवाद पर बातचीत होगी. पाकिस्तान कहता है कश्मीर पर बातचीत होगी. चिदंबरम कहते हैं पीओके भारत का हिस्सा है और वहां गए लड़कों के वापस आने पर सरकार को कोई एतराज़ नहीं है. शिवशंकर मेनन ने एनएसए बनने से तीन दिन पहले लिखे एक लेख में कहा कि बातचीत के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

सही बात है. हम कहते हैं आतंकवाद पर बात करो. पाकिस्तान कहता है कश्मीर पर बात करो. तो बातचीत क्या होगी. ज़ाहिर है धरती के बढ़ते तापमान या बीटी बैंगन पर तो हम बात करने से रहे. भारत और पाकिस्तान के बीच ये विवाद के विषय नहीं हैं. असली विवाद है सीमा का.

लेकिन विपक्षी दलों को चिंता सता रही है कि भारत कहीं अपनी सीमा पर ही समझौता न कर बैठे. मनमोहन सिंह की तारीफ तो वो भी करते हैं लेकिन उन्हें डर लगता है कि कहीं जम्मू-कश्मीर, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और जम्मू के मुस्लिम बहुल इलाकों के साझा प्रशासन की बात मंजूर न कर ली जाए. बीजेपी कहती है इस दिशा में कोशिशें चल रही हैं. कश्मीर को ऑटोनॉमी देने की बात करने वाली जस्टिस सगीर अहमद की रिपोर्ट पहले ही मंगवा ली गई है. उसका ये भी आरोप है कि इस रिपोर्ट को आनन-फानन में बनाया गया और इस पर समिति के सदस्यों से राय तक नहीं ली गई.

सरकार कहती है बातचीत के अलावा कोई विकल्प नहीं है. लेकिन बीजेपी का मानना है कि बातचीत न करना भी विकल्प है. यानी यथास्थिति बनाए रखना. सरकार को डर ये था कि मुंबई हमलों के बाद अगर कोई आतंकवादी हमला होता है और पाकिस्तान से बातचीत न हो रही हो तो फिर सैनिक कार्रवाई की धमकी देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता. कम से कम बातचीत अगर कर रहे हो तो उसे बंद करने की धमकी तो दे ही सकते हैं. यानी सरकार भी ये मानती है कि पाकिस्तान से बातचीत हो या न हो, भारत में आतंकवादी गतिविधियों पर रोक-थाम करना बेहद मुश्किल काम है क्योंकि पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व में न तो कोई दम है और न ही कोई इच्छा शक्ति कि वो भारत के खिलाफ हो रहे हमलों को रोके.

और अब पुणे में जर्मन बेकरी पर हो गया है बम विस्फोट. बातचीत शुरू होने से पहले ही. कुछ जानकार कह रहे हैं ये बातचीत को रोकने के लिेए किया गया है. यानी आतंकवादी भी नहीं चाहते हैं कि भारत पाकिस्तान बातचीत करें. शक की सुई लश्कर ए तैय्यबा पर है क्योंकि डेविड हेडली पुणे में रेकी करके गया था. विस्फोट के तरीके और विस्फोटकों के इस्तेमाल पर भी लश्कर की छाप दिख रही है. यानी फिर से पाकिस्तान पर उंगुली उठेगी. फिर सवाल उठेगा क्या हासिल होगा बातचीत करके.

इसलिए राहुल गांधी की एक बात बड़ी अच्छी लगी. कई बार वो दिमाग से नहीं दिल से बोलते हैं. उन्होंने कहा कि हम पाकिस्तान को बहुत ज़्यादा अहमियत देते हैं. उसकी ज़रूरत नहीं है. बिलकुल सही बात है. पाकिस्तान हमारे लिए अब दस साल पुरानी कहानी है. अब हमें पाकिस्तान की नहीं चीन की बात करनी चाहिए. बात करना है तो कर लो. लेकिन ये बात ध्यान में रख कर कि पाकिस्तान हमारी बराबरी पर नहीं है. हमारी उससे होड़ नहीं है. वो पड़ोस का एक नादान बच्चा है जो कई बार पार्किंग में खड़ी गाड़ी पर स्क्रेच कर चला जाता है तो कभी वाइपर तोड़ देता है. बच्चे से क्या बात करनी. उसकी शरारतों के लिए उसके बाप से बात करनी चाहिए. लेकिन उसके बाप हमें भी बच्चा ही मानते हैं और इसीलिए हमें पहली ज़रूरत उसके बाप से आंख से आंख मिला कर बात करने की हिम्मत पैदा करने की है. सुन रहे हैं अंकल सैम.

2 comments:

  1. अंकल सैम को बताने से क्या होगा. जब हमारे पास दांत ही नहीं हैं तो खाली फुंफकारने से क्या होगा. यह तो बिल्कुल वैसे ही है जैसे हमें कोई पीट रहा है और हम प्रतिकार करने की जगह पडोस के अंकल से बचाने की गुहार लगा रहे हों.

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  2. बात तो सही है...लेकिन अपने बच्चे भी तो पड़ोसी के घर के शीशे फोड़ सकते हैं...जरूरत है पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने की. चीन उत्तर-पूर्व में क्या कर रहा है इस पर भी ध्यान देना होगा. भारत को चीन के साथ बातचीत में अवैध हथियारों का मुद्दा
    उठाना चाहिए. चीन से आने वाले हथियारों के दम पर ही उत्तर-पूर्व
    में आतंकी संगठन फल-फूल रहे हैं.

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