Thursday, April 08, 2010

डटे रहो चिदंबरम

बहुत दिनों बाद हिंदुस्तान को ऐसा गृह मंत्री मिला है.

तुलना कीजिए चिंदबरम की सीरियल ड्रेसर शिवराज पाटिल से.
मुझे याद है राज्य सभा में नक्सलवाद पर बहस के बाद बतौर गृह मंत्री पाटिल का जवाब.
थोड़े बहुत शब्द इधऱ-उधर हो सकते हैं लेकिन लब्बो-लुआब यही है.
माननीय सभापति महोदय. मैंने सबकी बातें ध्यान से सुनीं. ये बहुत गंभीर समस्या है. जो मर रहे हैं (सुरक्षा बल) वो भी हमारे भाई हैं. जो मार रहे हैं (माओवादी) वो भी हमारे भाई हैं. और वो (विपक्षी बेंचों की ओर इशारा कर) जो इस पर सवाल उठा रहे हैं वो भी हमारे भाई हैं।

साईं भक्त पाटिल को माओवादी समस्या एकता कपूर के कहानी घर घर की सीरियल की तरह नज़र आती थी. भाई भाई आपस में लड़ रहे हैं. महाभारत हो रही है. गृह मंत्री धृतराष्ट्र की तरह बैठा है. न कुछ देख सकता है और न ही कुछ कर सकता है.

और एक फोटो देखिए आज छपा है. शायद इंडियन एक्सप्रेस में. राष्ट्रपति भवन में पद्म पुरस्कार समारोह. गृह मंत्री पी चिदंबरम सिर झुकाए अकेले कुर्सी पर सोच में बैठे हैं. इससे पहले जगदलपुर में प्रेस कांफ्रेंस में आवाज़ भारी हो गई थी. आँखों की कोर नम हो चली थीं.

राजनेताओं को गाली बकना हम लोगों की अब आदत है. हमें हर नेता चोर-उचक्का, बेईमान, भ्रष्टाचारी, पाखंडी और भी पता नहीं क्या क्या लगता  है.

शायद इसीलिए किसी की इतनी तारीफ आप शायद पचा न पाएं. लेकिन सच्चे दिल से चिदंबरम को सलाम करने को जी चाहता है.

गलतियां चिदंबरम ने भी की हैं. दंतेवाड़ा के हमले के तुरंत बाद ये कहना कि कहीं न कहीं कोई भयंकर भूल हो गई, एक तरह से सीआरपीएफ के जवानों की शहादत पर सवाल उठाना था. अगर गलती थी भी तो हर जवान की नहीं थी. किसी एक या दो बड़े अफसर की हो सकती है. लेकिन सारे जवानों की शहादत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता.

26 नवंबर के मुंबई हमले के बाद पाटिल की विदाई हुई. पेशे से वकील, अर्थ शास्त्र के जानकार और कई बार देश का बजट पेश कर चुके चिदंबरम ने कांटों का ताज पहना. गृह मंत्री बने.

एक साल तक देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को चौकस करने में लगे रहे. गृह मंत्रालय का ढांचा बदलने की और नई जांच एजेंसी बनाने की कोशिशें भी रंग लाईं.

मुंबई हमले के बरसी पर मुंह से निकला किस्मत थी कि कोई हमला नहीं हुआ तो इसके पीछे उनकी पुख्ता जानकारियां थीं कि तमाम कोशिशों के बावजूद सुरक्षा व्यवस्था में ढीलपोल बरकरार है जो रातों रात ठीक होने वाली नहीं है.

पुणे ब्लास्ट हुआ और अब माथे पर नया कलंक लगा है दंतेवाड़ा में 76 जवानों की निर्मम और बर्बर हत्या.

याद कीजिए... गृह मंत्री बनने के बाद से माओवादियों के प्रति यूपीए सरकार की नीतियों में बुनियादी बदलाव आया. अब कोई उन्हें रास्ते से भटका भाई नहीं कहता. बल्कि देश का दुश्मन बताता है. यहां तक कि अंदर ही अंदर चिदंबरम का विरोध करने वाली और अब तक माओवादियों पर थोड़ी नर्मी बरतने वाली कांग्रेस पार्टी भी अब मानती है कि माओवादियों को जड़ से खत्म करना ही होगा.

लेकिन कैसे करे चिदंबरम इस नई चुनौती का सामना. दिल से कोशिश की है माओवादियों से लड़ने की. झोला छापों ने तो उनके खिलाफ मुहिम छेड़ी हुई है.

अपनी ओर से कोशिश कर माओवाद प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई. एक बार नहीं कई बार. पहले झारखंड के शिबू सोरेन पतली गली से निकल लिए तो बाद में नीतीश कुमार भी. बुद्धदेव भट्टाचार्य को तो ममता बनर्जी के आगे कुछ दिखता ही नहीं है. ले दे के नवीन पटनायक और रमन सिंह दो मुख्यमंत्री हैं जो चिदंबरम के साथ डटे हुए हैं.

रमन सिंह तो इस हद तक कि चाहे छत्तीसगढ़ पुलिस का एक ही हेड कांस्टेबल सीआरपीएफ के साथ रहा और शहीद हुआ लेकिन जब चिदंबरम ने कहा कि ये केंद्र और राज्य सरकार का साझा अभियान था तो रमन सिंह ने भी हां में हां मिलाने में देरी नहीं की.

ऑपरेशन ग्रीन हंट का नाम चिदंबरम ने नहीं दिया. छत्तीसगढ़ पुलिस ने ही दिया. आज मीडिया इसी की चर्चा करता है और चिदंबरम इस नाम से बचते हैं.

अब क्या करेंगे चिदंबरम. कम से कम इतना तो करो कि माओवादियों को देश की संप्रभु सरकार को चुनौती देकर समानांतर सरकार चलाने वाले विदेशी विचारधारा से प्रेरित घुसपैठिए मानो.

या फिर कहो कि ये भी आतंकवादी हैं. बेकसूर लोगों का खून माओवादियों ने भी कम नहीं बहाया है.

आतंकवाद विरोधी जो कानून आप बम विस्फोट कर बेगुनाह लोगों की जान लेने वाले आतंकवादियों पर लगाते हैं वही कानून अब माओवादियों पर भी लगाओ.

राज्य सरकारों से बात कर माओवादियों के खिलाफ एक साझा नया सुरक्षा बल तैयार करो. सीआरपीएफ का काम देश में कानून व्यवस्था बनाए रखने का है... छिप कर गुरिल्ला युद्ध करने वाले माओवादियों से मुकाबला करने का नहीं.  खुफिया तंत्र को मजबूत करो. नक्सली इलाकों के लिए अलग तंत्र तैयार किया जाए. इस काम में थोड़ा समय ज़रूर लगेगा लेकिन अब वक्त आर या पार की लड़ाई का है. झुकने का नहीं.

माओवादियों के चंगुल वाले इलाके को धीरे-धीरे कर छुड़वाओ. जो जो इलाका भारत के पास वापस आता जाए (भारत ही बोलना होगा क्योंकि इनकी समानांतर सरकार में भारतीय संविधान के लिए जगह नहीं है. इनकी लड़ाई संविधान के खिलाफ है, हमारी सरकार के खिलाफ है. इस लिहाज से तो ये देश द्रोही ही हुए) उसे अधिकार में लेकर वहां स्थानीय प्रशासन को मजबूत करो. विकास की रोशनी उन इलाकों तक पहुँचाओं जो आजादी के साठ साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. हमारे आदिवासी भाइयों के लिए तमाम सुविधाएं मुहैया कराओ. असली भाई आदिवासी हैं न कि उन्हें बरगलाने वाले माओवादी. आम लोगों के लिए चलाई जा रही तमाम योजनाओं का वहां सीधा क्रियान्वयन सुनिश्चित कराओ.

ये सब करने में चिदंबरम के रास्ते में कई मुश्किलें आएंगे. उनकी अपनी पार्टी से ही विरोध की आवाज़ें उठने लगेंगी. लेकिन पिछले करीब डेढ़ साल में चिदंबरम ने जिस हौंसले और दूरदृष्टि का परिचय दिया है उम्मीद है वो आगे भी ऐसा ही करते रहेंगे. इसलिए डटे रहो चिदंबरम.
न दैन्यं, न पलायनं

5 comments:

  1. गृह मंत्री के रूप में पी चिदंबरम पसंदीदा रहे हैं. हाँ, शिवराज पाटिल से तुलना ही मानदंड नहीं हो सकता. वैसे अब उम्मीद जगी है कि नक्सलवाद बीते दिनों कि कहानी हो जाएगी.

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  2. अनुराग शर्मा

    चिदंबरम की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है...चिदंबरम का
    हौसला तोड़ने के लिए उन पर माओवादियों के समर्थक क्या-क्या
    आरोप नहीं लगाते...वेदांता का वकील...पूंजीपतियों का पोषक और
    न जाने क्या-क्या...जरूरत है कांग्रेस पार्टी के भीतर बैठे उन माओवादी समर्थकों को एक्सपोज करने की जो लगातार माओवादियों
    के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का विरोध कर रहे थे. जिनके सत्ता में रहते
    हुए आदिवासियों का शोषण हुआ...और माओवादियों को उनके राज्यों में जड़ें जमाने का मौका मिला...माओवादियों की विचारधारा (अगर ऐसी कोई चीज है तो) निहायत ही घटिया और दोयम दर्जे की है.
    जनता तक उनकी वो बातें नहीं पहुंच पाती जिनमें इस देश के टुकड़े-टुकड़े करने का जहरीला संकल्प छुपा है....कौन नहीं जानता कि माओवादी समाजवादी-साम्यवादी विचारधारा के नाते देश के तमाम अलगाववादी गुटों को समर्थन का दम भरते हैं...जरा कल्पना करके देखिए माओवादियों की तथाकथित "जनवादी सरकार" में कैसा होगा भारत का नक्शा...कश्मीर पाकिस्तान में जा मिलेगा...असम, लद्दाख, अरुणाचल, सिक्किम पर लाल ड्रैगन का कब्जा होगा. कटे-फटे भारत को क्या खाक संभालेंगे माओवादी...ये माओवादी ही हैं जिन्हें हिज्बुल्ला और हमास में फिलिस्तीनियों के मुक्तिदाता नजर आते हैं...याद करिए 26/11 के वक्त क्या किसी माओवादी ने एक शब्द भी कहा था पाकिस्तान के विरोध में...ये किसी प्रोपेगैंडा का हिस्सा नहीं है...माओवादियों के सर्वोच्च नेता गणपति का साक्षात्कार पढ़ने के बाद मैं इसी निष्कर्ष पर पहुंचता हूं...क्रांति हथियारों से नहीं होती...बगैर हथियारों के भी होती है इस बात को माओवादी जितनी जल्दी समझकर मुख्यधारा में लौटें बढ़िया है......जहां तक अरुंधति राय का सवाल है...उनके लिए सिर्फ इतना कहना है कि वाकई अगर वो जनवादी आंदोलनों का समर्थन करती हैं तो पहले जाकर उन गरीबों के घर पर आंसू बहाएं जिनके बेटे-बेटियों को माओवादी जबरन उठाकर ले गए...जिनकी बहनों से माओवादी कैंप में बलात्कार होता है...उन मांओं के आंसू पोछें जिनके बेटे दंतेवाड़ा के घने जंगल में मारे गए...93 लोगों की सभ्यतापूर्वक हत्या का दावा करने वाले किशन (किशनजी कहकर हत्यारे का सम्मान करने की मेरी बिलकुल इच्छा नहीं है) को मुक्तिदाता मानने वाले माओवादी समर्थक जाने-अनजाने कितना बड़ा गुनाह कर रहे हैं ये वो नहीं जानते. यकीन है कि ये बातें पढ़कर माओवादियों के समर्थक तिलमिला उठेंगे और उम्मीद है कि आत्मा नाम की चीज में यकीन होगा तो आत्मविश्लेषण भी करेंगे...बड़ा अच्छा लगा जब कांग्रेसियों से ज्यादा चिदंबरम के समर्थन में बीजेपी के नेता बोले...राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर इसी एकता की जरूरत है...चिदंबरम को इस्पाती हाथ के इस्तेमाल की जरूरत है... उन माओवादियों को उखाड़ फेंकना ही होगा जो शोषितों का समर्थन दम भरते हैं लेकिन भ्रष्ट नेताओं से सांठगांठ रखते हैं.

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  4. Chidambaram Saheb bhi apane dal ke Maowadi ke dawab me dikhate hain.Fir bhi unse Operation Blue Star jaise karwai ki ummid jaroor hai desh ko.
    Chidabram ji ki taarif har haal me honi chahiye,aur hoti hi rahani chahiye, khas kar media me.

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  5. क्या सर बीजेपी कवर करते करते कांग्रेस के समर्थक हो गए........हा हा हा...

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